
मैं खुद में कुछ आधी सी,वो मुझमें है पूरा सा। गर तन्हा हों हम दोनों तो,लगता चाँद अधूरा सा।। मैं धरती के रज कण जैसी, वो आसमान का तारा सा। प्रेम हमारा प्रतिदिन बढ़ता,नदिया की जलधारा सा।। बिन पलकें झपकाए देखूँ ,स्थिर होकर एकजगह। मानो कोई देखरहा हो,आसमान में ध्रुव तारा सा।। बिन पंखुड़ियों के गुलाब की,उस बिन वैसी दिखती मैं। तोड़ ना ले कोई मेरी बगिया से,फूल वो सबसे प्यारा सा।। मैं शक...