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Showing posts from November 9, 2019

मेहनत और मशक्कत // Amardeep Sahu Deep

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"मशक़्क़त" मेहनत भी पूरी मशक्कत से हो तो फल मिलता है। हम हमारे थकने तक के सफर को हमारी मेहनत की पराकाष्ठा मान लेते है। इसी धरती पर सौ मीटर दौड़ कर हाँफने वाले भी मिल जायेंगे और पचास किलोमीटर की मैराथन रेस  दौड़कर भी चेहरे पर मुस्कुराहट कायम रखने वाले भी मिल जायेंगे। हमारी कल्पनाओं ने जितनी जमीन मापी है हमारा सफर उससे बस एक इंच आगे नहीं जाना चाहता है। उसके आगे ताकत होते हुए भी हम स्वयं को थका हुआ पायेंगे। अपनी दृढ़ता, मेहनत, लगन और प्रतिबद्धता को आम भीड़ से अलग स्तर पर ले जा कर स्थापित करो। आपकी सफलता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा दुनियां के लोग नहीं बनेंगे। आपकी दुर्बल भावनाएं आपकी दौड़ का दायरा घटा देगी। सारी दुनियां आपको हारा हुआ मान ले लेकिन आपका मंतव्य ऐसा नहीं है तो जल्दी ही दुनियां को आपके प्रति बनाई धारणा बदलनी पड़ेगी। बेशक बड़े इरादों के लिए चुनाैतियाँ भी बड़ी ही होगी। हर व्यक्ति के लिए सफलता की अपनी स्वयं की परिभाषा है। आपकी परिभाषा दूसरे से अक्षरश: कभी नहीं मिलेगी। आपके भीतर सफलता की भूख की तीव्रता भी अलग स्तर की होगी। मेहनत और मशक्कत में अंतर है। बड़ी कामयाबियों के लिए

ईर्ष्या और हमारा जीवन // Jealous and our life // Amardeep Sahu Deep

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ईर्ष्या और हमारा जीवन 🌷एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से कहा कि वे कल प्रवचन में अपने साथ एक थैली में कुछ आलू भरकर लाएं। साथ ही निर्देश भी दिया कि उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। अगले दिन किसी शिष्य ने चार आलू, किसी ने छह तो किसी ने आठ आलू लाए। प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था जिससे वे नफरत करते थे। अब महात्मा जी ने कहा कि अगले सात दिनों तक आपलोग ये आलू हमेशा अपने साथ रखें। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन सभी ने आदेश का पालन किया। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों को कष्ट होने लगा। जिनके पास ज्यादा आलू थे, वे बड़े कष्ट में थे। किसी तरह उन्होंने सात दिन बिताए और महात्मा के पास पहुंचे। महात्मा ने कहा, ‘अब अपनी-अपनी थैलियां निकाल कर रख दें।’ शिष्यों ने चैन की सांस ली। महात्मा जी ने विगत सात दिनों का अनुभव पूछा। शिष्यों ने अपने कष्टों का विवरण दिया। उन्होंने आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया। सभी ने कहा कि अब बड़ा हल्का महसूस हो रहा है।… महात्मा ने कहा, ‘जब मात्र सात दिनों मे

लड़के भी रोते हैं // Boys also cry // Amardeep Sahu Deep

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🎓..... लड़के भी रोते हैं .....🎓 घर में बच्चे लेकिन बाहर मशहूर होते हैं . अजी लड़के भी रोते हैं जब घर से दूर होते हैं , लड़के भी घर से बाहर मम्मी के बगैर होते हैं . यदि लड़की घर की लक्ष्मी तो लड़के भी कुबेर होते हैं , बस यादें ही जा पाती हैं अपने गांव की जमीनों तक. लड़के भी कहाँ जा पाते हैं कई साल,महीनों तक, अपनों की सपनों के खातिर ये भी मजबूर होते हैं. अजी लड़के भी रोते हैं जब घर से दूर होते हैं। हमेशा सोचते है घर के बारे में पर खड़े कहीं और होते हैं सिर्फ लडकियां ही नहीं लड़के भी दिल के बडे़ कमजोर होते हैं विश्व जीतने का एक सिंकदर इनमें भी होता है. बस रोते नहीं पर एक समंदर इनमें भी होता है, यदि लड़की पापा की परी तो लड़के भी कोहिनूर होते हैं, अजी लड़के भी रोते हैं जब घर से दूर होते हैं। माना की लड़कियों को घर छोड़ जाने का एक डर होता है लेकिन इनका एक घर के बाद दूसरा घर होता है, माना लड़कों को कोई डर नहीं होता. ये नौकरी तो कई शहरों में करते हैं पर इनका कोई घर नहीं होता, चंद पैसों के खातिर इनके भी सपने चूर होते हैं , अजी लड़के भी रोते हैं जब घर से दूर होते हैं ,....

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