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Showing posts from July 14, 2018
मधुशाला | Madhushala    -   हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan मृदु भावों के अंगूरों की  आज बना लाया हाला,  प्रियतम, अपने ही हाथों से  आज पिलाऊँगा प्याला,  पहले भोग लगा लूँ तेरा,  फिर प्रसाद जग पाएगा,  सबसे पहले तेरा स्वागत  करती मेरी मधुशाला।।१।
आखिर पाया तो क्या पाया?    -   हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा जब थाप पड़ी, पग डोल उठा औरों के स्वर में स्वर भर कर अब तक गाया तो क्या गाया? सब लुटा विश्व को रंक हुआ रीता तब मेरा अंक हुआ दाता से फिर याचक बनकर कण-कण पाया तो क्या पाया? जिस ओर उठी अंगुली जग की उस ओर मुड़ी गति भी पग की जग के अंचल से बंधा हुआ खिंचता आया तो क्या आया? जो वर्तमान ने उगल दिया उसको भविष्य ने निगल लिया है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु जूठन खाया तो क्या खाया?
मैं नीर भरी दुःख की बदली | कविता    -   महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma मैं नीर भरी दुःख की बदली, स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रंदन में आहत विश्व हँसा, नयनो में दीपक से जलते, पलकों में निर्झनी मचली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली ! मेरा पग पग संगीत भरा, श्वांसों में स्वप्न पराग झरा, नभ के नव रंग बुनते दुकूल, छाया में मलय बयार पली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली ! मैं क्षितिज भृकुटी पर घिर धूमिल, चिंता का भर बनी अविरल, रज कण पर जल कण हो बरसी, नव जीवन अंकुर बन निकली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली ! पथ न मलिन करते आना पद चिन्ह न दे जाते आना सुधि मेरे आगम की जग में सुख की सिहरन हो अंत खिली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली ! विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना परिचय इतना इतिहास यही उमटी कल थी मिट आज चली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली !
अधिकार | कविता    -   महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma वे मुस्काते फूल, नहीं  जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप, नहीं  जिनको भाता है बुझ जाना। वे नीलम के मेघ, नहीं  जिनको है घुल जाने की चाह, वह अनन्त रितुराज, नहीं  जिसने देखी जाने की राह।
जो तुम आ जाते एक बार | कविता    -   महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार
जो अगणित लघु दीप हमारे, तूफ़ानों में एक किनारे, जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन, मांगा नहीं स्नेह मुँह खोल। कलम, आज उनकी जय बोल। पीकर जिनकी लाल शिखाएं, उगल रही सौ लपट दिशाएं, जिनके सिंहनाद से सहमी, धरती रही अभी तक डोल। कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा, क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के, सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल। कलम, आज उनकी जय बोल। _#RAM DHARI SINGH DINKAR_ Ramdhari Singh Dinkar

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