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पुस्तक - न भूतो न भविष्यति

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आ ज एक चिर प्रतिक्षित किताब पढ़नी शुरू की है । सिर्फ तीस पन्ने पढ़े है और एक बहुत सुंदर प्रसंग आया और स्वयं को बताने से रोक नहीं सका ।      मैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस का प्रशंसक हूँ और उन्हें एक निश्छल अबोध सरल से सरलतम सन्यासी के रूप में देखता हूँ ....उनकी इसी निश्छलता और सरलता का प्रसंग पढ़ा और मन पुलकित हो गया ।     इस प्रसंग में नरेंद्र, ठाकुर (रामकृष्ण परमहंस) की बातों से उनको थोड़ा पगलाया हुआ सा समझते है और अपने तर्क वितर्क से, अपनी हाई स्कूल के ज्ञान से, देश विदेशों के पढ़े दर्शन से वे ठाकुर को समझाने की चेष्टा करते है कि जिस माँ के दर्शन की वे बात करते है वो वास्तव में "हैल्यूसिनेशंस" है ।     ऐसे में सबको ऐसा सब दिखता है जिसकी वे कल्पना करते है और आपकी 'माँ' भी आपको ऐसे ही दिखती है।      ठाकुर का मुहँ उतर जाता है और वे बोलते है लेकिन माँ मुझसे बाते करती है।    नरेंद्र कहते है कि आप सिर्फ बातें करते है, लोगो के साथ तो देवी देवता नृत्य भी करते है....यह एक रोग है , कही बढ़ न जाये, संभालिये अपने आप को।  ...

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