ध्रुवस्वामिनी नाटक ( Part 3 )
नाटक ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद अनुक्रम तृतीय अंक पीछे (शक-दुर्ग के भीतर एक प्रकोष्ठ। तीन मंचों में दो खाली और एक पर ध्रुवस्वामिनी पादपीठ के ऊपर बाएँ पैर पर दाहिना पैर रखकर अधरों से उँगली लगाए चिन्ता में निमग्न बैठी है। बाहर कुछ कोलाहल होता है।) सैनिक : (प्रवेश करके) महादेवी की जय हो! ध्रुवस्वामिनी : (चौंककर) क्या! सैनिक : विजय का समाचार सुनकर राजाधिराज भी दुर्ग में आ गए हैं। अभी तो वे सैनिकों से बातें कर रहे हैं। उन्होंने पूछा है, महादेवी कहाँ हैं? आपकी जैसी आज्ञा हो, क्योंकि कुमार ने कहा है... ! ध्रुवस्वामिनी : क्या कहा है? यही न कि मुझसे पूछकर राजा यहाँ आने पावें? ठीक है, अभी मैं बहुत थकी हूँ। (सैनिक जाने लगता है, उसे रोककर) और सुनो तो! तुमने यह नहीं बताया कि कुमार के घाव अब कैसे हैं? सैनिक : घाव चिन्ताजनक नहीं हैं। उन पर पट्टियाँ बँध चुकी हैं। कुमार प्रधान-मंडप में विश्राम कर रहे हैं। ध्रुवस्वामिनी : अच्छा जाओ। (सैनिक का प्रस्थान) मन्दाकिनी : (सहसा प्रवेश करके) भाभी! ब...