मेरे पथ पर शूल बिछाकर दूर खड़े मुस्काने वाले - नरेन्द्र दीपक //

 मेरे पथ पर शूल बिछाकर दूर खड़े मुस्काने वाले

दाता ने संबंधी पूछे पहला नाम तुम्हारा लूंगा।


आंसू आहें और कराहें

ये सब मेरे अपने ही हैं

चांदी मेरा मोल लगाए

शुभचिंतक ये सपने ही हैं


मेरी असफलता की चर्चा घर–घर तक पहुंचाने वाले

वरमाला यदि हाथ लगी तो इसका श्रेय तुम्हे ही दूंगा।


सिर्फ उन्हीं का साथी हूं मैं

जिनकी उम्र सिसकते गुज़री

इसीलिये बस अंधियारे से

मेरी बहुत दोस्ती गहरी


मेरे जीवित अरमानों पर हँस–हँस कफन उढ़ाने वाले

सिर्फ तुम्हारा क़र्ज चुकाने एक जनम मैं और जियूंगा।


मैंने चरण धरे जिस पथ पर

वही डगर बदनाम हो गयी

मंजिल का संकेत मिला तो

बीच राह में शाम हो गई


जनम जनम के साथी बन कर मुझसे नज़र चुराने वाले

चाहे जितना श्राप मुझे दो मैं सबको आशीश कहूंगा ।

मेरे पथ पर शूल बिछाकर दूर खड़े मुस्काने वाले

दाता ने संबंधी पूछे पहला नाम तुम्हारा लूंगा ।।

✍️✍️ लेखक - नरेन्द्र दीपक

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