कच्ची उम्र का पक्का प्यार || कहानी || AmardeepSahuDeep

 क नाम सुनते ही अचानक से दूसरी दुनिया में खो सी गई थी रिया। कॉलेज की जिंदगी का आखि‍री साल था, और गर्मी की सुबह पेपर देने जाते वक्त पुराने दिनों की याद उसे हमेशा की तरह आ ही गई थी । जब वह किशोरावस्था की चौखट पर जा कर खड़ी ही थी , उसे अपने रंग रूप पर थोड़ा -थोड़ा गुमान होने लगा था । उसकी उम्र से कुछ साल बड़े युवा लड़कों की निहारती आंखें, उसे इतना तो बता ही चुकी थी कि वह खूबसूरत है। जब भी वह कहीं जाती , लोग भीड़ में भी उसे निहारते....

कभी-कभी वह भी मन ही मन इतराती , तो कभी गंदी निगाहों से खुद को बचाती । लेकिन उसका मन कहीं जा कर अटका हो , ऐसा तो अब तक नहीं हुआ था ।

नजरें टिकी न थी किसी पे, पर नजरें कमाल थी

सब ताकते थे उसको , वो बेमिसाल थी 

एक रात चाची के घर बैठ कर टीवी देख रही थी , उसी वक्त दरवाजे पर कोई आया था। दरवाजा खुला हुआ था। रिया ने झांक कर देखा, तो बाहर कोई रिश्तेदार या चाची का कोई जानने वाला बाहर दरवाजे पर खड़ा था। चाची ने उन्हें अंदर बुलाया। रिया को इस बात से कोई मतलब नहीं था , कि घर में कौन आया है। उसे तो बस अपने फ़ेवरेट सीरियल दिया और बाती हम  देखने से मतलब था, जो वह बड़ी तल्लीनता से देख रही थी।

इतनी देर में रिश्तेदार भी उसी कमरे में आकर बैठ गए जहां रिया तकिये से टिककर टीवी देख रही थी । लेकिन रिश्तेदार के साथ जो अजनबी चेहरा कमरे में दाखि‍ल हुआ, तो रिया

का ध्यान अचानक ही उस चेहरे पर चला गया । सांवला सा चेहरा था । रिया चुपचाप उठकर किचन में चली गई। नाश्ता बनाने में चाची की मदद करने के लिए।

देखकर भी अनदेखा करना , जानते हैं मगर

ध्यान कैसे हटाएं ये जान न पाया कोई

चाची , पकौड़े का घोल तैयार कर पकौड़े तल रही थी , इतने में रिया के भैया भी आ गए, और उस नवेले चेहरे की पूछताछ शुरू हो गई। निशांत नाम था उसका । और वह रिया के घर

के पीछे सफेद वाले घर में रहता था । लेकिन रिया के भैया के मुताबिक वह सफेद घर तो किसी पुलिस वाले का था । भैया ने फिर पूछा - कि आपके घर में कोई पुलिस वि‍भाग में है

क्या ... जवाब आया .. हां मेरे फूफा जी हैं। भैया तो संतुष्ट हो गए लेकिन एक कन्फ्यूजन जरूर हो गया ।

वो कुछ और कहते रहे, हम कुछ और समझ बैठे

इसी गलतफैमी में, दिल किसी और को दे बैठे

बातों का सिलसिला चल ही रहा था इतने में रिया गरम-गरम पकौड़े लेकर कमरे में आई। रिया ने जिद कर-कर के बड़े प्यार से उन लोगों के पकौड़े खिलाए। नाश्ता चल ही रह था ,

कि रिया उठकर कमरे से बहर जाने लगी । रास्ते में कुर्सियां रखी हुई थी , जिन्हें हटाते हुए निशांत ने रिया के लिए रास्ता बनाया । बस फिर क्या था , बाली उमर पर लड़कों की इन्हीं शराफत का अक्सर जादू चल जाता है, सो रिया पर भी चल गया 

वो मनचलों पर न मचला जो दिल था मेरा

तेरी शराफ़त पे सब जीतकर भी हार बैठे हम  

बातों का सिलसिला खत्म हुआ और मेहमान अपने घर को चले। लेकिन इसके साथ ही एक और भी सिलसिला चल पड़ा था । हर शाम अब रिया जब अपनी छत पर जाती , तो उसकी नजरें घर के पीछे वाले सफेद घर पर होती , जिन्हें छत पर किसी के आने का इंतजार रहता था । कुछ दिनों तक यही चलता रहा , लेकिन रिया के साथ अजीब वाक्या होता था । रिया जिस छत पर किसी चेहरे को ढूंढती , वहां उसे कोई नजर नहीं आता । लेकिन उस सफेद घर के बगल वाले एक छोटे से घर की छत पर जरूर कोई उसे देखने के लिए रोज आया करता था । रिया कुछ समझ नहीं पा रही थी । वह ये जानने का प्रयास कर रही थी कि क्या यह शख्स वही है जो उसके घर का मेहमान बनकर आया था , और दिल में बस गया .... या फिर कोई अजनबी चेहरा । लेकिन यह चेहरा

अजनबी तो नहीं लगता । बहुत कुछ जाना पहचाना और अपना सा लगता है।

वो शक्ल दिल के हर कोने में ढल गई जैसे

आजतक अजनबी न लगा जो अजनबी था मुझसे

रि‍या ने अभी नौवीं की परीक्षा पास की थी। वो गर्मी कि छुट्टियां ही थी , जब छत पर हर शाम एक दूसरे की झलक दिखाई देती थी । घर बहुत पास भी नहीं था इसीलिए

चेहरा भी धुंधला सा ही दि खा ई देता था । लेकिन छत पर उसका होना ही दिल के रूमानियत के हजारों जज्बातों से भर देता था । दोनों एक दूसरे की निगाहों से छुपते-छुपाते एक दूसरे को देखा करते थे। और अब यह आदत बन चुकी थी , कि शाम से लेकर रात को छत पर सोने तक निगाहें उस छत पर होती थी । सुबह उठते ही निगाहें फिर उसी छत पर जा टिकती थी । दोनों की ही छत पर किनार नहीं होने का सबसे बड़ा फायदा यही था । जब जिसकी नींद खुलती , बिस्तर पर लेटे-लेटे ही एक दूसरे को

देखना शुरू कर देता । जैसे दुनिया भर की रूमानि यत इन दोनों को बख्शी हो खुदा ने।

तुझे देख-देख सोना , तुझे देखकर है जागना

मैनें ये जिंदगानी संग तेरे बितानी तुझमे बसी है मेरी जान

हाय, जिया धड़क-धड़क जाए...

अब रिया को वह सांवली शक्ल कुछ भोली सी लगने लगी थी । गर्मी की छुट्टि‍यों का हर दिन लगभग ऐसे ही गुजरने लगा । उधर निशांत भी बारहवीं क्लास पास करके,

इस साल कॉलेज में दाखि‍ल होने वाला था । अब यह सिलसिला बढ़ने लगा था और रिया की सहेलियां भी उस अजनबी के किस्सों से वाकिफ थीं ।कॉलेज खुल चुके थे,

रिया की सहेली दीप्ती भी इस साल कॉ लेज जाने वाली थी , जिसका उत्साह रिया और पारूल पर भी चढ़ा था । भले ही रिया और पारूल स्कूल में थे लेकिन तीनों

मिलकर घंटों तक स्कूल कॉलेज और जहान की बातें करते और हंसी ठहा के लगाते ।

गर्मी की छुट्टियां खत्म हुई। रिया और पारूल के स्कूल शुरू हुए और दीप्ती के कॉलेज। अब तीनों सहेलियों के बीच चर्चा का नया विषय केवल कॉलेज के किस्से थे जो

दीप्ती उन्हें सुनाती थी और तीनों मिलकर मजे से चर्चा करती । कॉलेज के दिन में पहला प्यार न हो ऐसा कम ही होता है. बाली उमर पर प्यार के छींटे पड़ ही जाते हैं । 

वो उमर निकल जाए बगैर भिगोए किसी को 

ये मोहब्बत का रंग इतना हल्का भी नहीं होता

अब दीप्ती को भी कॉलेज में कोई पसंद आने लगा था , जिसके बारे में खूब बातें होती । दीप्ति अपने किस्से सुनाती और रिया अपनी छत वाले किस्से। जबसे रिया के

स्कूल खुले थे, निशांत रोज सुबह उसे स्कूल के समय पर दिखाई देता था । निशांत ने रिया को देखने के लिए सुबह की सैर शुरू की थी । रिया साइकिल से स्कूल जा रही होती और निशांत सैर से लौट रहा होता । फिर दोनों की नजरें मिलती ... धड़कते दिल से एक दूसरे को देखकर दोनों आगे निकल जाते। जो बिजलियां गिरती थी सुबह-सुबह, उसकी कसक दोनों ही जानते थे बस।

इधर दीप्ती का एकतरफा आकर्षण भी अपनी कहानी गढ़ रहा था । शहर में एक छोटा सा मेला लगा हुआ था। पारूल का प्रोग्राम तो नहीं बन पाया लेकिन दीप्ति और रिया अपनी सायकल से मेला देखने निकले ही थे कि कुछ दूर आगे जाकर निशांत दिखाई दिया जो अपनी सायकल से कहीं जा रहा था । रिया के

मन में लड्डू फूट रहे थे, दीप्ति को यह बताने के लिए कि यही है वह लड़का , जो उसे छत से देखता है। रिया ने आगे निकल चुकी दीप्ति को आवाज लगाई और खुशी से फूली न समाते हुए कहा - दीप्ति यही है वो ....। दीप्ति भी बेहद उत्साहित थी निशांत को देखकर। वह भी रिया को यही बताना चाहती थी - कि यही है वह, जिसे कॉलेज

में दीप्ति पसंद करती है ।

गुड्डे-गुडि़()()() और कपड़े तो होते थे एक जैसे प्यार में यही इत्तफाक हुआ

मोहब्बत भी हुई तो एक ही शख्स से उनको

कहानी में नया मोड़ आ चुका था । दोनों हैरान भी थी और हंसी भी नहीं रूक रह थी । हालांकि निशांत का झुकाव रिया की तरफ था इसीलिए दीप्ति ने ही ()()() 

उचित समझा और अपनी दोस्ती निभाई। अब दीप्ति ने ही निशांत का नाम पता करके रिया को बताया । बस फिर क्या था , नाम और सरनेम जानकर तो टेलीफो न

डिक्शनरी में से नंबर ढूंढने का प्रया स कि या गया । 5 से 6 रां ग नबर लगा ने के बाद निशांत के घर का असली नंबर भी मिल गया था । लेकिन उसने कभी फोन नहीं उठाया ।

भटकते पहुंची जो उसके दर पर

दरवाजा खुला मिला , पर वो नहीं मिला

एक शाम रिया अपनी सहेली पारूल के घर पर खि‍ड़की से बाहर झांक रही थी , शाम करीब पौने 5 बजे का समय था । तभी उसे दूर से निशांत की कद काठी का कोई धुंधला-सा अक्स आता हुआ दिखा । जैसे-जैसे वह नजदी क आ रहा था , रिया के दिल की धड़कनें बढ़ रही थी । रिया ने जल्दी से पारूल ओर दीप्ती को आवाज लगाई ..... अरे जल्दी आओ न, निकल जाएगा वह।

हाय वो अचानक सामने आकर, नजर का मिलना

यूं लगा जैसेहम हम न रहे, कतल हो गए 

दो घंटे तक आंखों की इस मुलाकात का सुरूर उतरा भी नहीं था कि निशांत की वापसी हुई। तीनों सहेलियां बाहर के बरामदे में बैठी थी ..। एक बार फिर वही भोली सूरत, कातिल दबी मुस्कान के साथ ...। इस बार रिया उसे लौटते हुए पीछे से भी देर तक देखती रही ... जब तक आखों से वह ओझिल न हो गया । लेकिन जाते-जाते निशांत की टीशर्ट के पीछे की तरफ लिखा उसका नाम आज रिया को पता चला । दरअसल निशांत रोज अपने नाम लिखी हुई सफेद टी -शर्ट

पहनकर हर शाम को उसी वक्त क्रिकेट की प्रेक्टिस के लिए मैदान जाता था ।

अब तो निशांत के आने और जाने का वक्त भी रिया और उसकी दोनों सहेलियों को पता चल चुका था , लिहाजा रोज शाम पौने पांच बजे पारूल के घर के पीछे वाले दरवाजे पर खड़े हो कर निशांत का इंतजार किया जाने लगा । निशांत भी अब रोज आइने के सामने सज-संवरकर घर से निकलता । उसे भी तो रिया के सामने अच्छा दिखना था । अब ये रोज का मसला हो चला था । ठीक समय पर निशांत का सामने से निकलना और रिया का दरवाजे पर खड़ा मिलना .... दोनों की नजरें टकराना , थोड़ा शरमाना , थोड़ा मुस्काना ।एक मौन प्रेम कहानी परवान चढ़ रही थी ।

वो हौले से देखते हैं छुप कर

यहां दिल धड़कते हैं छुप-छुप कर

निशांत के शर्मीले स्वभाव पर कभी -कभी गुस्सा भी आता । उसके न बोल पाने के कारण तीनों मिलकर उसकी खि‍चाई भी करती । जब भी निशांत सामने से निकलता तीनों उसे छेड़ते हुए उस पर कमेंट करती और ठहाका लगा देती । निशांत बेचारा हिम्मत भी नही जुटा पाता । रिया कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गई थी , किसी शादी में तभी शर्मीले स्वभाव के निशांत ने पारूल से उसके घर का नंबर पता किया और रिया के न दिखाई देने का कारण भी ये कुछ दिनों की दूरी दोनों को और भी करीब

ला रही थी । जब रिया घर वापस लौटी तो अपनी सबसे प्रिय जगह, छत पर जाकर निशांत को निहार ही रही थी , इतने में पारूल वहां आ गई और रिया से उसके घर चलने कह जिद करने लगी । जब रिया पारूल के घर पहुंची तो कुछ ही देर बार फोन की घंटी बजी । पारूल ने कहा - उठा ले, तेरे ही लिए है।

अब दिल ही नही धड़कते, आवाज भी आती है

उसकी बातें भी मन को खूब लुभातीं हैं

यहीं से निशांत और रिया की पहली बात शुरू हुई, जहां दोनों ने एक दूसरे के बारे में जाना । अब अक्सर दोपहर के वक्त पर बातें हुआ करती थी , जब रिया के घर पर कोई नहीं होता। सुबह इशारों में फोन करने का समय बता दिया जाता और रिया अपने घर के दो फोन में से एक का कनेक्शन निकाल देती ,

ताकि दूसरे फोन से कोई उसकी बातें न सुन ले। धीरे से मोबाइल फोन का जमाना भी आ गया और दोनों की मैसेज और कॉल से रातों को बातें होने लगी ।

अब चल पड़ा था सिलसिला उनकी बातों का

दिल उधर धड़कता था , आवाज यहां आती थी

निशांत जब बात किए बगैर सो जाता , तो रिया घंटों तक बि‍स्तर पर लेटे-लेटे रोती रहती । फिर सुबह छत पर भी निशांत की तरफ चेहरा नहीं करती । लेकिन जल्दी मान भी जाती । यही बात निशांत को बहुत पसंद भी थी । दीप्ति दोनों के बीच उपहारों या संदेशों का कभी-कभार आदान-प्रदान कर दिया करती थी । एक दिन निशांत ने दीप्ति को बता या कि उसकी नौकरी लग गई है और वह शहर के बाहर जा रहा है...। बगैर बात किए वह चला भी गया । इन दिनों रिया ने जुदाई के पलों को बेहद करीब से जिया था। लेकिन ये वक्त भी ज्यादा समय तक नहीं रहा। निशांत को नौकरी पसंद नहीं आई ओर वह 1 महीने बाद लौट आया। रिया की जान में जान आई।

तुम क्या गए वो एक एहसास चला गया

अपनों के बीच सेउठकर कोई खास चला गया

अब इस रिश्ते को 3 साल हाने को आए थे, और रिया ने बारहवीं पास कर ली थी । अब रिया ने मुंबई के कॉलेज में एडमिशन ले लिया था । दोनों के बीच तय हुआ कि निशांत हर महीने रिया से मिलने मुंबई जाएगा। रि याने शहर छोड़ दिया। और मुंबई में एक हॉस्टल में रहने लगी। यहां भी दोनों के बीच प्यार कम नहीं हुआ। लेकिन दो साल बाद रिया की जिंदगी में कई सारे मोड़ आ गए थे। निशांत कभी मुंबई नहीं आया ... और रिया भी अब बदल चुकी थी। शहर की हवा का रंग उसके परों में लग चुका था और वह बहुत दूर जा चुकी थी। अब केवल दोनों एक दूसरे को बस याद किया करते थे। 

जिंदगी ने उसके साथ ये कैसा सौदा किया

दुनिया की समझ देकर, मासूमियत छीन ली

अब केवल दोनों एक दूसरे को बस याद किया करते थे। जब तक रिया के पैर जमीन पर आए, वह बहुत कुछ पीछे छोड़ चुकी थी । लेकिन आज भी गर्मियों की सुबह

बीते हुए लम्हों की कसक याद तो होगी, ख्वाबों में ही सही मुलाकात तो होगी। 

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