मल्लिका में मजनूं भी
मो हन राकेश का ''आषाढ़ का एक दिन'' हिंदी नाटकों में एक क्लासिक का दर्जा हासिल कर चूका है , और कई निर्देशकों ने इसे निर्देशित किया है और इसके भीतर निहित संकेतों और अभिप्रायों का अन्वेषण किया है | पिछले दिनों साहित्य कला परिषद् के "भारतेन्दु नाट्य उत्सव" में वरिष्ठ रंगकर्मी प्रभात कुमार बोस के निर्देशन में फिर से इस बात की पुष्टि हुई कि एक क्लासिक नाटक वही है जो बार बार खेले जाने के बावजूद अपने भीतर कुछ रहस्य छिपाये रहता है | एक बड़ा निर्देशक भी वही है जो कई बार खेले गये नाटक में नवीन अर्थ का अनुसंधान करता है | प्रभात कुमार बोस ने "आषाढ़ का एक दिन" की प्रस्तुति में ऐसा ही किया | यह प्रस्तुति इस बात को रेखांकित करने वाली थी कि मल्लिका, कालिदास और विलोम ( इस नाटक के तीन बड़े चरित्र ) के अन्तर्सम्बन्धों में प्रेम का वह तनाव मौजूद है जो सनातन भी है और किसी एक खास समय में ( यानि आज भी ) बिंधा हुआ भी | इस प्रस्तुति में संगीत और मंच सज्जा के कल्पना...