मल्लिका में मजनूं भी

मोहन राकेश का ''आषाढ़ का एक दिन'' हिंदी नाटकों में एक क्लासिक का दर्जा हासिल कर चूका है , और 
        कई निर्देशकों ने इसे निर्देशित किया है और इसके भीतर निहित संकेतों और अभिप्रायों का अन्वेषण  किया  है | पिछले दिनों साहित्य कला परिषद् के "भारतेन्दु  नाट्य उत्सव" में वरिष्ठ रंगकर्मी प्रभात कुमार बोस  के निर्देशन में फिर से इस बात की पुष्टि हुई कि एक क्लासिक नाटक वही है जो बार बार खेले जाने के बावजूद अपने भीतर कुछ रहस्य छिपाये रहता है | एक बड़ा निर्देशक भी वही  है जो कई बार खेले गये  नाटक में नवीन अर्थ का अनुसंधान  करता है | प्रभात कुमार बोस  ने "आषाढ़ का एक दिन" की प्रस्तुति में ऐसा ही किया | 
यह प्रस्तुति इस बात को रेखांकित करने वाली थी कि मल्लिका, कालिदास और विलोम ( इस नाटक के तीन बड़े चरित्र )  के  अन्तर्सम्बन्धों में प्रेम का वह तनाव मौजूद है जो सनातन भी है और किसी एक खास समय में ( यानि आज भी )  बिंधा हुआ भी | 

इस प्रस्तुति में संगीत और मंच सज्जा के कल्पनाशील प्रयोग और अभिनय की सूक्ष्मताओं से मल्लिका के एकांतिक प्रेम का वह  रूप दिखता है जिसमें वह झुलस भी जाती है  लेकिन कालिदास के प्रति अपने लगाव में कमी नहीं आने देती | प्रेम की कई परिभाषाएं हैं और इनमें  एक यह भी है जो बुझाए नहीं बुझती | मल्लिका की  माँ  अम्बिका चाहती है कि  उसकी बेटी का कालिदास के प्रति प्रेम ख़त्म हो जाये , विलोम भरपूर कोशिश करता है मल्लिका कालिदास को भूल जाए लेकिन मल्लिका के मन का प्रेम रूपी धागा तो कालिदास से  बंधा है | वह  धागा कोमल जरूर है पर इतना मजबूत भी है कि वक्त के थपेड़े खाकर भी नहीं टूटता | इसलिए वर्षों बाद जब कालिदास मल्लिका के पास अपराधी की तरह लौटता है , तो पाता है कि  उसके लिखे महाकाव्यों की तुलना में वे कोरे पृष्ठ अधिक काव्यमय हैं जिन पर मल्लिका के आंसुओं से  उन खाली पन्नों पर सच्चे प्रेम का काव्य लिखा गया है |  राकेश का यह नाटक अपने यथार्थ में मल्लिका के प्रेम का सच्चा रूप  है | स्त्री पात्र होने के बावजूद वह इस नाटक में नायक है | विचार के स्तर पर इस वाद का भेद मिट जाता है कि  नायक और नायिका अलग हैं | मल्लिका सिर्फ एक नारी पात्र नहीं है , बल्कि उस विचार की प्रतिमूर्ति है कि  जहां प्रेम में पुरुष भी पतंग कि  तरह जल सकता है और स्त्री भी इसप्रकार मल्लिका वहां मजनूं भी है और कालिदास वहां लैला हो जाता है | 

मल्लिका में अगर किसी पुरुष को अपने प्रेम की अभिव्यक्ति भी दिखे तो आश्चर्य नहीं | प्रभात कुमार बोस  की मल्लिका ( अभिनेत्री दीपिका बोस   ने लाजवाब अभिनय किया है  ) एक औरत है लेकिन साथ ही प्रेम की वह  अदुतीय छवि भी है जिसमे लिंग की संवेदना कोई मायने नहीं रखती जिस प्रकार किसी पुरुष  ( कालिदास  ) की वास्तविक लेखनी प्रसिद्धि प्राप्त कर  सकती है ठीक उसी प्रकार मल्लिका के आँसू भी कोरे कागज पर कविता लिख सकते हैं और प्रसिद्धि तो स्वतः मिल गयी |

        बहरहाल यह अलग बिषय है  |  फिलहाल वह समय आ गया है  जब हमें प्रेम की कीमत को समझना चाहिए तथा अपने जीवन साथी पर प्रेम रूपी धागा बांधने से पहले आगे की परिवर्तनशील जिंदगी उसी के साथ निर्वहन करेंगे इसका फैसला लें  | |





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