आतंकवाद एवं नक्सलवाद राष्ट्रीय एकता में बाधक // Amardeep

बिषय - आतंकवाद एवं नक्सलवाद राष्ट्रीय एकता में बाधक

 लेखक - अमरदीप साहू "दीप" (बी.ए. सिल्वर मेडल, कानपुर विश्वविद्यालय-2021)

संपर्क - 8726740628, 7990756088 

जब किसी राष्ट्र के सभी व्यक्ति किसी भी आधार पर भावनात्मक एकता का अनुभव करते हैं एवं राष्ट्रहित के लिए अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक हितों का त्याग करते हैं तो यह कहा जाता है कि उस राष्ट्र में राष्ट्रीय एकता है।


रामधारी सिंह दिनकर जी ने कहा है कि - *राष्ट्रीय एकता से तात्पर्य किसी राष्ट्र के सभी व्यक्तियों में 'हम' की भावना का होना है।.*


आज सम्पूर्ण विश्व में अतएव मानव जाति में आतंकवाद ने अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं, 9/11 का अमेरिकी हमला तथा 26/11 का मुम्बई ताज हमला तथा अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का कब्ज़ा हमें इस बात का एहसास कराते हैं कि आतंकवाद नाम की बीमारी बहुत बड़ी है।.


आतंकवाद एक प्रकार की हिंसात्मक गतिविधि है जब कोई व्यक्ति या संगठन अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किसी अन्य देश के नागरिकों को निशाना बनाता है या वहां की शान्ति भंग करता है तो इस कुकृत्य को आतंकवाद की संज्ञा दी जाती है।


हालांकि आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा के लिए UNGA के सभी 193 सदस्यों ने इस अपराध के लिए कठोर कानून बनाये हैं, परन्तु क्या ये पर्याप्त हैं ?


आतंकवाद का मकसद किसी व्यक्ति विशेष को उसकी सम्पत्ति को नष्ट करना होता है, किसी देश की आन्तरिक सुरक्षा में खलल पैदा करना होता है। आतंकवादी हमला किसी भी देश के लिए सही साबित नहीं हो सकता, कुछ आतंकवादी संगठन आज की युवा पीढ़ी को भी इस मौत के कुँये में झोंक रहे हैं इससे राष्ट्र की युवा शक्ति तो नष्ट होती ही है साथ ही साथ राष्ट्र की एकता में बाधा उत्पन्न होती है।

आतंकवाद को बढ़ाने के लिए आज धर्म का भी सहारा लिया जाता है - 

Terrorism is a duty and assassination is Sunna.

 सुन्ना का अर्थ है - the way of profit.

 इस प्रकार आतंकवाद को धर्म का जामा पहना दिया गया है, यह धर्म का दुरुपयोग है तथा राष्ट्रीय एकता में बाधा सिद्ध होता है।


सन् 1979 में पाकिस्तान ने एक नीति अपनाई कि वह कश्मीर में आतंकवाद को सहारा देगा और कश्मीर को स्वतंत्र देश घोषित किया जायेगा। उनका नारा था - Blitze India अर्थात - भारत के टुकड़े करो, आज भी भारत देश कश्मीर राज्य में आतंकवाद से जूझ रहा है।, कश्मीर में अमन और शान्ति के लिए केन्द्रीय रिजर्व सुरक्षा बल (CRPF) दिन-रात मुस्तैद रहता है। यह आतंक किसी भी राष्ट्र की एकता और शान्ति के लिए बाधक बना हुआ है।.


*नक्सलवाद क्रान्तिकारी का परिवर्तित रूप है* :- नक्सलवाद मूल रूप से कानूनी समस्या है या विषमता से उत्पन्न वह लावा है जो आदिवासी के रूप में, पिछड़ी जनजाति के रूप - में जंगलों में निवास करता है तथा समाज से कट कर अलग रहता है इन जनजातियों को सरकार की कोई भी सुविधा नहीं होती है।


दुनियाभर के विचारकों का एक वर्ग जहां नक्सलवाद को आतंकवाद जैसी क्रूर गतिविधि से जोड़कर इसे देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानता है तो दूसरा वर्ग इसे सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक, विषमताओं एवं दमन, शोषण की पीड़ा से उपजा एक स्वतः स्फूर्त विद्रोह समझकर इसका पक्षपोषण करता है।


*"हाँ, अब हमने भी उठा ली है तुम्हारे खिलाफ बन्दूक*

*तुम जो समझते हो तमंचों की भाषा"*

भारत के पूर्वजों ने अंग्रेजी हुकूमत की शोषणकारी नीतियों से तंग आकर क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था।

किसी भी राष्ट्र के लिए आन्तरिक सुरक्षा सबसे अहम होती है और किसी नक्सली हमले से राष्ट्र की आन्तरिक सुरक्षा तितर-बितर हो जाती है यह राष्ट्र की एकता में बाधक सिद्ध होती है।. हमारे देश में झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे पूर्वांचल के राज्यों में नक्सली हमले देश की आन्तरिक सुरक्षा में सेंध मारते हैं।  इनका मुख्य कारण वहां की सरकारों द्वारा आदिवासी, पिछड़ी जनजाति को समाज की मुख्य धारा से अलग रखना है इससे आदिवासियों को किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिल पाती तथा यही आदिवासी नक्सल में सामिल होकर नक्सली हमले करते हैं।.


कुछ नक्सली संगठनों को दूसरे देशों से फंडिंग की जाती है जिससे राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति भंग हो सके और नक्सली हमला आतंकवादी हमले में बदल जाता है और राष्ट्र की एकता में बाधा उत्पन्न होती है।.

वर्ष 1967 से 1980 तक नक्सलियों ने मार्क्सवादी और माओवादी का अनुसरण किया।

जिसका मक़सद हमारे देश की आन्तरिक सुरक्षा और राष्ट्रीय एकता को आहत करके अपने नापाक इरादों से आतंकवाद को बढ़ावा देना था।।


Comments

A list of Blog Posts (Playlist)

Show more

Follow us on Twitter

आपकी आगंतुक संख्या