प्रेम की पराकाष्ठा को समझना



कुछ दिन पहले मेरी करीब तेईस साल की घरेलू सहायिका ने शिकायत, चिढ़ और क्रोध भरे लहजे में कहा- ‘देखो जरा… अभी मुझसे ब्रेक-अप हुए एक हफ्ता भी नहीं हुआ कि इसने अपने वाट्सऐप पर दूसरी लड़की की फोटो लगा ली!’ इस पर मेरा चौंकना लाजिमी था। मैंने कहा कि तुम्हें कैसे मालूम कि वह उसकी दूसरी स्त्री मित्र ही है? कोई अन्य भी तो हो सकती है! मेरे प्रश्न के उत्तर में उसने कहा- ‘वह ऐसा ही है। मुझे चिढ़ा रहा है!’ मैंने कहा कि तुम तो कह रही थीं, तुम्हारा उससे अब कोई वास्ता नहीं! फिर तुम क्यों उसका नंबर सहेज कर बैठी हो और उसकी डीपी देख रही हो? वह भी जानता होगा कि तुम जरूर देखोगी। इस पर उसने लापरवाही से जवाब दिया कि तो क्या है! उसकी इस लापरवाही भरी अदा और लहजे में कहीं कुछ ऐसा था, जिसने मुझे चौंका दिया। यों प्रेम के विषय में अक्सर एक जानी-मानी कहावत का इस्तेमाल करते हुए कहा जाता है कि युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है। प्रेम को परिभाषित करते हुए उदात्त प्रेम और वासना जैसी श्रेणियों की बात की जाती रही है और यह भी सच है कि यह भेद आज भी लौकिक जगत में मौजूद है। तभी शायद कहीं एक-दूजे के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया जाता है तो दूसरी ओर प्रेम में धोखा भी दिया जाता है। इसमें जो प्रेम को लेकर गंभीर होता है, जब उसे अपने प्रेम पात्र के अन्य प्रेम संबंध के बारे में पता चलता है तब ठगे जाने का एहसास होता है।

गुजरी सदी के आखिरी सालों में बाजार और व्यवसायीकरण ने बहुत कुछ बदला है। बदलते समाज के साथ प्रेम ने भी रूप बदला है। यह सही है कि प्रेम एक सहज प्रवृत्ति है जो सबको अपने दायरे में समेटती है। यह एक सामान्य-सा सत्य है कि जो प्रेम दांपत्य की नींव है, वही प्रेम अनेक रूपों में हमारे सामने आता है। कभी देश प्रेम के रूप में तो कभी साहित्य प्रेम के रूप में, कभी वात्सल्य तो कभी भाई-बहन का प्रेम। प्रेम का रूप समय-समय पर बदलता रहा है। मध्ययुग के ‘भरे भौन में नयनों से बात करने वाले नायक-नायिका आधुनिक युग तक आंखों ही आंखों में इशारा करते रहे हैं।

गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था’ में प्रेम एक कर्तव्य बन कर सामने आता है। शायद भारतीय समाज की संरचना इस तरह की रही है कि यहां प्रेम की उन्मुक्त अभिव्यक्ति उस तरह से संभव नहीं थी। यों वसंतोत्सव से लेकर मदनोत्सव तक का जिक्र प्राचीन संस्कृति और ग्रंथों में मिलता रहा है। परंपरागत रूप से प्रेम में विश्वास, आदर, प्रतिबद्धता, मैत्री- सब एक-दूसरे की देखभाल में शामिल रहे हैं। लेकिन अब उस रोमांटिक प्रेम भावना, जिसके तहत किसी के प्रेम में पड़ कर खुद को पूरी तरह कुर्बान कर देने की हद तक जाया जा सकता था- से कहीं अधिक प्रेम वस्तुगत संरचनाओं से प्रभावित होता दिखाई दे रहा है। जातिगत और वर्गगत संरचनाएं सत्ता संबंध, उत्पादन संबंध और अर्थव्यवस्था इस पर हावी होती जा रही हैं।प्रेम अब गणितीय समीकरण बनने की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। सोशल मीडिया ने एक नए रूप में प्रेम का विस्फोट किया है, जहां बड़े-बड़े सितारे हैं, उनकी आलीशान व्ययभोगी शादियां हैं और उनको युवाओं के लिए प्रेरणा बनाया जा रहा है।

यहां अब प्रेम उस तरह से दबा-ढंका नहीं। सघन प्रेम के लिए प्रेम और ऐंद्रिकता का एकात्म अनिवार्य माना जाने लगा है। अब खासतौर पर शहराती लोगों में अधिकतर प्रेम संबंध सुविधा के लिए हैं। शायद इन संबंधों में वह विश्वसनीयता खत्म होती जा रही है जो प्रेम का मूल है।
‘तेरा भी यह तौर है/ तो अपना भी यह दौर सही…’
या ‘तू नहीं और सही और नहीं और सही’ का नजरिया इसमें भरता जा रहा है।

जेंडर अध्ययन में प्रेम एक खास तरह की समस्या को लेकर आता है। परंपरागत सोच स्त्री से यह मांग करता है कि स्त्री प्रेम में डूब कर अपना सब कुछ न्योछावर कर दे। जबकि आधुनिक स्त्री को अब एक खास तरह का नारा दिया जा रहा है- ‘मैं अपनी फेवरेट हूं’।

जहां कांट प्रेम को नैतिकता में बांध कर उसे परोपकार और एक-दूसरे के प्रति सरोकार में बांधते हैं। वहीं इरिगरे प्रेम में स्व प्रेम को आवश्यक मानती हैं। उनके अनुसार- ‘प्रेम कोई ऐसी शै नहीं जिसके चक्कर में पड़ कर व्यक्ति बुद्धि और जीवन  के रास्ते से हटते हुए एक तरह की बेलौस समझ का शिकार होता चला जाए। बल्कि प्रेम तो एक ऐसा संकल्प है, जिसके तहत व्यक्ति किसी दूसरे के साथ सहअस्तित्व में रहने के जीवंत अनुभव से गुजरता है और उस रिश्ते को सफल करने के लिए आदर तार्किकता और विचार का सहारा लेता है।’प्रेम सही मायनों में तभी प्रेम है, जब दोनों पक्ष अपना-अपना व्यक्तित्व रखते हुए एक-दूसरे का सम्मान करें। प्रेम के इसी लोकतंत्र का उदाहरण केदारनाथ अग्रवाल की कविता है जो उन्होंने पत्नी के प्रति प्रेम निवेदित करते हुए कही है- ‘हे मेरी तुम/ यह जो लाल गुलाब खिला है/ खिला करेगा/ यह जो रूप अपार हंसा है/ हंसा करेगा/ यह जो प्रेम पराग उड़ा है/ उड़ा करेगा/ धरती का उर रूप-प्रेम-मधु पिया करेगा ।’



यह कहानी हमारी मित्र मण्डली की सदस्या रेखा रायजादा  ने लिखी है  ||





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