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प्रेम विस्तार है स्वार्थ संकुचन - स्वामी विवेकानन्द

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प्रेम विस्तार है स्वार्थ संकुचन - स्वामी विवेकानन्द ये उद्गार शब्द शक्ति के विख्याता , भारत के महान दार्शनिक सन्त स्वामी विवेकानन्द द्वारा व्यक्त किये गये है। स्वामी जी द्वारा कही , अपने जीवन चक्र में पालन की हुयी तथा दूसरों को इसकी प्रेरणा के लिए ये पंकितियाँ बहुत महत्वपूर्ण हैं।       संत विवेकानंद द्वारा कही लगभग सभी पंकितयों में मानवप्रेम का पारावार पूर्णतयः दिखाई देता है। वे जन जन को मानव से प्रेम करने का आवाह्न करते हैं। उनकी स्पष्ट मान्यता है कि एक-दूसरे से सहज प्रेम भाव ही मानवता है , मानवता के विकास का आधार है। स्वार्थ , ईर्ष्या , द्वेषभाव त्यागकर श्रेष्ठ मानव समाज की भावना को व्यक्त करते हुये नीचे लिखी पंकितयां उसके भाव को स्पष्ट करती हैं --- तुम द्वेष के हर घाव को सीना सीखो विष छोड़कर अब अमृत को पीना सीखो ए-चाँद सितारों पर पहुँचने वालो मानव की तरह धरती पर रहना सीखो स्वार्थ का अर्थ होता है - स्व + अर्थ ( निज हित ) स्वार्थ हमारी मनोस्थिति के सोचने की शक्ति को सीमित करता है अतएव हमारा विकास भी सीमित होता है। प्रेम विस्तार स्वार्थ संकुचन का प्...

स्वच्छता भारत मिशन Clean India Green India Poem

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स्वच्छ हो भारत की धरती स्वच्छता इसकी शान हो। विश्व पटल पर भारत का एक अलग पहचान हो। स्वच्छता खुद से शुरु हो फिर गली मुहल्ले गांव मे। खुली हवा मे सांस लें हम स्वच्छ पेड़ के छाव मे। राम-कृष्ण भी धरती पर स्वच्छता का संदेश दिए। खांडवप्रस्थ निर्माण कर अलग उदाहरण पेश किए। आओ गांधी के सपनों  को मिलकर हम साकार करें। स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का खुलकर हम प्रचार करें। आओ हम सब मिलकर संकल्प को दोहराएंगे। स्वच्छता ही सेवा है ये बात सबको बताएंगे।

विश्व साक्षरता दिवस कविता

शिक्षा हमारे जीवन का आधार है इसके बिना हमारा जीवन बेकार है शिक्षा ही जीवन का भविष्य है इसके बिना जीवन बेकार है जो शिक्षित होते है वोह खुश रहते है क्योकि ज्ञान से ही देश महान है हर किसी को शिक्षा का महत्त्व बताओ लड़के लडकियों को विद्यालय रोज भिजाओ शिक्षा हमारे जीवन का आधार है इसके बिना हमारा जीवन बेकार है देश में शिक्षा का प्रसार फेलाओ और हमारे देश को आगे बढाओ देश में व्याप्त बुराई का नाश करो देश को ऊंचाई पर पहुचाने का प्रयत्न करो शिक्षा हमारे जीवन का आधार है इसके बिना हमारा जीवन बेकार है

विश्व साक्षरता दिवस कविता Poem on International Literacy Day in Hindi

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शिक्षा एक अनमोल रत्न है,गली-गली लगाओ नारा  एक साथ सब मिल–झुलकर,बोलो शिक्षा का जयकारा  शिक्षा ही महान बनाती, शिक्षा ही जीना सिखाती  बिन शिक्षा पशु है मानव फैला दो ये बात जग सरा  गली-गली लगाओ नारा, शिक्षा से मिटता अंधियारा  शिक्षा जैसा दान नही, शिक्षा से बडा कोई काम नही  शिक्षा से ही जमीर जागता, शिक्षा से ही अज्ञान भागता  जब शिक्षित होगा नर-नारी, तभी मिटेगी दिक्कत सारी  शिक्षा से ही तन मन खिलता,फैला दो ये बात जग सारा  गली-गली लगाओ नारा, शिक्षा से मिटता अंधियारा  शिक्षा से लोभ, लालच मिटे तृष्णा, शिक्षा से ही मिले कृष्णा  शिक्षा से संस्कार मिले, शिक्षा से शिष्टाचार मिले  शिक्षा से ही दौलत आती, शिक्षा ही मुकाम दिलाती  शिक्षित व्यक्ति भूखा नही रहता, फैला दो ये बात जग सारा  गली-गली लगाओ नारा, शिक्षा से मिटता अंधियारा  शिक्षा में असली जान है, शिक्षा गीता का ज्ञान है  शिक्षा में छुपे प्रकृति के राज,जिसे कहते हम विज्ञान है  शिक्षा से ही राज मिले, शिक्षा से ही ताज खुले  शिक्षा ही इतिहास पलटती, फैला दो...

अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 8 सितम्बर International Literacy Day

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साक्षरता दिवस पर कविता  गाँव-नगर में बना दो, शिक्षा का परिवेश। अलख जगा दो ज्ञान की, करो साक्षर देश।। -- कोई व्यक्ति नहीं रहे, यहाँ अँगूठा-छाप। पढ़ने-लिखने के बिना, जीवन है अभिशाप।। -- आज साक्षरता दिवस को, मना रहा संसार। शिक्षित करो समाज को, दिवस करो साकार।। -- दीप जलाकर ज्ञान का, दूर करो अज्ञान। जाकर निर्धन के यहाँ, दे दो अक्षर ज्ञान।। -- पढ़े-लिखे ही लोग तो, करते जग-उद्धार। जीवन के हर क्षेत्र में, फैला दो उजियार।। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस  -  8 सितम्बर

कह देना कोई खास नहीं

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कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,  कह देना कोई खास नहीं  एक दोस्त है कच्चा पक्का सा, एक झूठ है आधा सच्चा सा, ज़ज़्बात को ढके एक परदा बस, एक बहाना है अच्छा सा, जीवन का एक ऐसा साथी है, जो दूर होकर पास नहीं , कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, कह देना कोई खास नहीं, हवा का एक सुहाना झोखा है, कभी नाज़ुक तो कभी तूफानों सा, शक्ल देखकर जो नज़रें झुका ले, कभी अपना तो कभी बेगानों सा, जिंदगी का एक ऐसा हमसफर, जो समंदर है पर दिल को प्यास नहीं , कोई तुमसे पूछे , कौन हूँ मैं, कह देना कोई खास नहीं , एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है, यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है, यूँ तो उसके होने का कुछ गम नहीं, पर कभी कभी आंखों से आंसू बन के बह जाता है, यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है, पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं  कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं,, कह देना कोई खास नहीं,,                                             -- अमरदीप  साहू  ...

शिक्षक दिवस Teacher's Day

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धूप में छांव जैसी होती है माँ   हमारे जीवन की पहली शिक्षक हमारी माँ होती है।  हम कितने भी ऊँचे ओहदे  पर क्यों न पहुँच जाएँ पर गुरु हमेशा हमसे बड़ा था ,है और रहेगा। जब नन्हा शिशु  इस  संसार में आता है तो उसको इस नए संसार से परिचय कराने वाली हमारी माँ होती है। एक लड़की के लिए सबसे अच्छी मित्र उसकी माँ होती है ठीक वैसे ही एक लड़के के लिए उसका सबसे अच्छा मित्र उसके पिता होते हैं।   अपनी माँ के साथ अमरदीप   पिता तो सुबह ही अपने काम पर चले जाते हैं पर शिशु के देखरेख की जिम्मेदारी उसकी माँ पर होती है।  सुबह की आरती से लेकर, रसोई की खट-पट, छत पर कपड़े-अचार-पापड़ सुखाते हुए, कढ़ाई-बुनाई करते हुए… या फिर बालों में तेल लगाते हुए, रात में लोरी गाते हुए, कहानी सुनाते हुए… खनकती चूड़ियों से सजे हाथों से दिनभर की अपनी तमाम ज़िम्मेदारियां निभाते हुए बातों-बातों में जीवन की न जाने कितनी गूढ़ बातें सिखा जाना… ये हुनर स़िर्फ मां के पास होता है… न कोई क्लासरूम, न कोई किताब, न कोई सवाल-जवाब… वो बस अपने प्यार, अपनी बातों, अपने हाव-भाव से ही इतना कुछ सिख...

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